Hindi Poetry

ज़ीनत

अलस्सुबह पेशानी पर ख़्वाबों की झुर्रियां का
झुकी अब्रों से खेलना
दिल के स्याह कोनों से मखमली एहसास का
लबों पर आ ठहरना
दूर पहाड़ी के काँधे पर हाथ रखे इक बगूले का
धीमे धीमे उतरना

ख़्यालों की मीठी चुभन से नखरीले हवाओं के
नश्तर का घुलना फिज़ा में
धुंए के आगोश में गुम सुनहरी गोटियां का
कदम ब कदम ज़मीं पे फिसलना

देखो ! आगाज़ करती नए दौर का
हुस्न के नशे में चूर इक मदहोश सुबह फिर आई है,
कुदरत ने करवट बदली, दिसम्बर के जाते जाते
अलाव की ज़ीनत लौट आई है, लौट आई है !
Anupama

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