Fursat ke Pal

ये मन

कभी-कभी अनजाने ही आप कुछ लोगों के बेहद करीब आ जाते हैं। खास जगह बन जाती है उनकी आपकी ज़िंदगी में। और कभी बस यूं ही किसी से इतने परेशान कि सामने आना दूर की बात, समय-असमय हुआ टकराव भी चुभने लगता है।

किस पर मढ़ें दोष? उन अदृश्य तरंगों पर, जो अनचाहे ही मन पर असर कर जाती हैं या उन अनबूझे पूर्व जन्म के कर्मों पर, जो दोस्ती-दुश्मनी रिश्ते-नातों की अनकही बेड़ियों के आधार हैं।

कभी-कभी सोचती हूँ कि शायद हम परिस्थितियों से खासा प्रभावित होते हैं। हमारे फैसले ठोस सच्चाई पर नहीं वरन् क्षणिक भावनाओं पर आधारित होते हैं। अचानक हुआ बदलाव अक्सर हमारी संवेदनशीलता को बहुत बढ़ा देता है, कुछ इस हद तक कि छोटी से छोटी बात भी गहरा असर छोड़ जाए हमारे कोमल मन पर। झकझोर दे दिल की नलियों को, झनझना दे बेसुध आत्मा के सुर-ताल को। सोच-समझ से कहीं परे, अथाह सागर में तड़पती झील की मछली सा, जल-वायु की प्रचुर मात्रा में भी दम तोड़ने को मज़बूर कर दे इस मन को !

सच, ये मन, एक सरल सा शब्द, दो अक्षरों का जोड़, जीवन की सबसे अबूझ पहेली बन जाती है। ऋषि-मुनियों के सानिध्य में ही इस पर काबू पाना मुमकिन होता होगा, इस भीड़-भाड़ वाले शहर में भागदौड़ करते नहीं। या फिर निपट बहाने हैं सभी। हम इंसान गढ़े ही कुछ ऐसी शैली में हैं कि सुविधानुसार तरल पानी से भावों में बह जाते हैं, वाष्प बन गगन में बादलों से लहराने लगते हैं और मौका पाते ही पाषाणी अंदाज़ में सारी अनुभूतियों को नकार देते हैं। समयानुसार पलटवार करने में पूर्णतया सक्षम।

क्या सही है और क्या गलत कौन जाने? आखिर गोले में खड़े होकर भी आप नाक की सीध में देख सपाट रेखा सा ही अनुभव करते हैं, कोण कहां नज़र आते हैं? दृष्टि भ्रम कहते होंगे लोग इसे, हम तो जीवन को टेढ़ी-मेढ़ी जलेबी समझ इसकी मिठास का भरपूर आनंद लेने में विश्वास करने लगे हैं।

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