आशंकाएं अपेक्षाएं अभिलाषाएं
जितने कठिन शब्द उतने ही गहरे मतलब
पग भरते ही मंज़िल के दूर होने का डर
मंज़िल मिल गई तो देर होने का डर
ऊंचाई पर पहुंच फिसल जाने का डर
यही तो है न आशंका?
कर्म करते ही फल मिलने की आशा
बीज बोते ही पेड़ के उगने की आशा
भला किया भलाई अवश्य मिलेगी
यही है न अपेक्षा?
दो कदम साथ चलके जीवनसंगी होने का दंभ
मन की दूरियों को दरकिनारकर समाज में
सुखी दिखने का भ्रम
खुद को हर हाल में उत्कृष्ट साबित करने का दमख़म
यही तो होती है न अभिलाषा?
जितने बड़े शब्द उतने ही खोखले मतलब।
आज इनके परे का सरल जीवन समझना चाहती हूँ
इन मुश्किल शब्दों का अर्थ उधेड़ना चाहती हूँ
बस शब्द ही नहीं मिल रहे
मिलेंगे भी कैसे उनसे ही तो जूझ रही हूँ।
और शब्द हो या इंसान कुरेदे जाना
किसी को पसंद नहीं
घाव रिसने जो लगते हैं।
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