Hindi Poetry

सर्दियों की शामें

सर्दियों की शामें कितनी शर्मीली होती हैं न
नरम सूरज के ताप से गुलाबी हुए गाल
घने केसुओं की ओट में छिपाए
कितनी ख़ामोशी से
चाँद के आगोश में पिघल जाती हैं
चमकते दमकते सितारों को
दामन में काढ़
नई नवेली दुल्हन सी
बदलियों की पायल छनकाती
रात की दहलीज़ पर हौले से दस्तक दे
झट अँधेरे में गुम जाती हैं
दिन रात का मेल कराती
सर्दियों की ये शामें
सच कितनी अकेली भी होती हैं न !!
Anupama

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