Hindi Poetry

गीली रेत

गीली रेत के सीने पर लिखती हूं
उंगलियों से अपना नाम
खो जाता है अगले ही पल
सागर की चंचल लहरों में
बिना छोड़े कोई निशां।

पर नहीं लील पाता समुद्र भी
भीगी बालू के निस्वार्थ प्रेम को
उस भोले निमंत्रण को
क्षणभंगुर मन के बेबाक यंत्रों को।

अपनी हठधर्मिता से
प्रबल कर देता है इच्छा मेरी कि
अब रेत के नहीं
समुद्र के सीने पर छोड़ने हैं निशां!

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