उलझ जाती हूँ इन शब्दों के
मकड़जाल में।
असीमित वाक्य अनकहेे स्वर
विरामों में छुपे नए तथ्य।
अब तो इन शब्दों की गर्दन
दबोचना चाहती हूँ
बांहें मरोड़ना पांव तोड़ना चाहती हूँ
अर्क निकाल देना चाहती हूँ
भाषा के इन प्रहरियों का
शायद कुछ नए अर्थ समझ पाऊँ!
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