व्यस्त हूँ, रहना चाहती हूँ…हर पल, हर घड़ी….फाइलों के ढेर में सिर झुकाए बैठी हूँ …..कंप्यूटर पर, बिन आवाज़ दौड़ती उँगलियाँ, शब्दों के आढ़े तिरछे रेखाचित्र उभार रहीं हैं…गर्म चाय का घूँट भरती हूँ…बेख्याली में बिस्किट का छोटा सा टुकड़ा देर तक कप में डूबा रहता है….वो कब ठोस से तरल… तरल से विलीन हुआ, नहीं जानती….मेरी नज़रें स्क्रीन पर टिकीं हैं…कीबोर्ड और माउस का परफेक्ट संयोजन… किसी खास प्रयत्न के अभाव में भी अपने गन्तव्य की ओर निर्बाध गतिमान है…शब्द, अंक, तथ्य….कम्प्यूटर की मेमोरी में दर्ज़ हुए जाते हैं, स्विच ऑफ़ होने के बाद भी…दिखते नहीं पर होते हैं…प्रिंटर की स्याही धुंधली हो चली है.. फिर भी कागज़ पर अमिट छाप छोड़ जाती है…संगी साथियों से बतियाती हूँ… चेहरे पर मुस्कान खिली है… मुख मुद्रा चेतना के ऊपर झीना सा पर्दा डाले है.. मैं यहीं हूँ, तन से… पर मन…इसकी स्लेट पर लिखा भी दिखता नहीं.. स्विच ऑन करने पर भी.. पर जानते हो कालजयी है… समय, स्थान, परिस्थितियों का गुलाम नहीं… कितनी ही व्यस्त रहूँ, तुम झरोखों से चले आते हो… कभी मुस्कुराते, कभी संजीदा, कभी मुझे टटोलते, कभी बिन कहे ही सब समझ, थके हारे मन पर मलहम लगाते… व्यस्त हूँ,रहना चाहती हूँ…तुम्हारे समन्दर की लहर, तुम्हारे आकाश की बदली बनकर…
Anupama
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