Hindi Poetry

वास्तविक

किसी ने कहा ये क्या हर पल
फूल पौधों पेड़ों पक्षियों पर लिखती हो
कुछ वास्तविक लिखो
सड़कों के गढ्ढों पर बढ़ते करप्शन पर
विफल हो चुके प्रशासन पर
गरीबों के उत्थान पर।

हमने भी जुगत भिड़ाई
सोचा
चलो इनसे भी दो दो हाथ कर लें भाई!

विचारने लगे हम भी राजनीति का सवाल,
कैसे किया भ्रष्टों ने देश का बुरा हाल
हर तरफ हाहाकार छाया है,
चर्चा में है, कौन किस स्कैम का सरमाया है
कितने पैसे हज़म किए,
कितने जनता को ज़ख्म दिए

हर पार्टी चीख चीख कर दूसरों पर आरोप लगाती
खुद को इस कलयुग का मसीहा जताती
और हम आम इंसान
कभी इसके तो कभी उसके बहलावे में आ जाते हैं
कुछ समझ ही न पाते हैं!

पर क्या सचमुच हम इतने भोले हैं?
हम तो लोकतंत्र में रहते हैं न,
जैसे भी हों अपने नेता हम ही तो चुनते हैं

सड़कों पे बेतहाशा गाड़ी भगाते हैं
आगे निकलने की धुन में
फुटपाथ पर भी गाड़ी चढ़ाते हैं
रहने को कानून ताक पर रख
चौमंज़िला घर बनाते हैं
सबकी आंख बचाकर
बिजली पानी की चोरी कराते हैं
हर बात पे “चलता है” का राग अलापते हैं
सब लेते हैं कहके
दहेज व रिश्वत के नाम पर दूसरों का पैसा दबाते हैं
सभाओं में चीख चीख कर
गरीब बच्चों के हित का मुद्दा उठाते हैं
और घर में पैसे बचाने के चक्कर में
मुन्नु से पोचा लगवाते हैं।

तो फिर फर्क ही क्या हम में और
ऊंची कुर्सियों पे बैठे समाज के ठेकेदारों में
कहीं उन्हें कोस कर हम
खुद का ही बचाव तो नहीं करते!

आप भी सोच रहे होंगे कहां उलझ बैठे,
कुछ सनकी प्रकृति में गुम ही अच्छे!

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