Hindi Poetry

उनींदी

उनींदी अंखियों के पैरहन में
लिपटी ख्वाबों की मासूम बूंदें
बारिश बन धरा पर आई हैं

सौंधी सी खुशबू है घुली सांसों में
ढीले से जूडे़ में सहेजे गेसुओं पे
बेला की कलियां मुस्काई हैं

मई की तपिश को शीतल करती
वो काली बदलियां फिर लौट आई हैं ! अनुपमा सरकार

 

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