उनींदी अंखियों के पैरहन में
लिपटी ख्वाबों की मासूम बूंदें
बारिश बन धरा पर आई हैं
सौंधी सी खुशबू है घुली सांसों में
ढीले से जूडे़ में सहेजे गेसुओं पे
बेला की कलियां मुस्काई हैं
मई की तपिश को शीतल करती
वो काली बदलियां फिर लौट आई हैं ! अनुपमा सरकार
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