Fursat ke Pal

उधेड़बुन

जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं….हरेक पल नई चुनौती सा मुंह बाए खड़ा रहता है…स्वप्न लोक में बुनी अभिलाषाएं जाग्रित होते ही हवा में छूमंतर हो जाती हैँ…..बंद आंखों की किवाड़ों में सेंध लगाती किस्मत की परछाई से हर घड़ी जूझना होता है….क्षणभंगुर कहलाने वाले इस मृत्प्राय शरीर को अनथक प्रयासों से निरंतर जीवंत रखने की चेष्टा करनी होती है…कहीं सांसों से पहले आस साथ न छोड़ दे…. इसकी भरसक कोशिश करनी होती है…

पर दरअसल शाश्वत सत्य तो केवल एक…..पृथ्वी की सतह पर किसी रस्सी से लटके नट हैं हम…सावधानी न बरती तो लावे में गिर उबल जाएंगे या आकाश में गिर हमेशा के लिए खो जाएंगे…. दोनों में से एक परिणाम निश्चित ही है….स्वर्ग नरक मान लो या आकाश पाताल का भेद….अंत वही….केवल समय और तरीका अलग…..

और इसी उधेड़बुन में त्रिशंकु से झूल रहे हैं हम….आने वाले कल की रूपरेखा खींचते …. बीते कलों की यादें सहेजते….पर पूर्वनियोजित कुछ भी नहीं… समय और काल का अभेद्य प्रपंच है ये जीवन…..पल पल अर्थ बदलता है…चाहे सीटी बजाते मस्ती में काट लीजिए….चाहे नए पुराने मकड़जालों में उलझते सुलझते रहिए….कट तो जाएगा ही

Anupama

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