Hindi Poetry

तोड़ दो

तोड़ दो पंख उम्मीदों के
खुशियों के होंठ गोंद से चिपका दो
न सजने दो सपनों के महल
खुली खिड़कियों पे काले पर्दे चढ़ा दो

रोशनी बिखेरते उन तारों को
अँधेरे का मतलब समझाओ
गाढ़ दो उन जुगनुओं को मिट्टी में
बेमतलब चमकने की सज़ा दिलवाओ

नोंच दो उस खिले चेहरे को
बहने दो पीब मवाद
उसे उसकी असलियत दिखाओ

आगे बढ़ो, सूराख कर दो उन मटकों में
जिनमें मीठा पानी हिलोरे मार रहा है
खारी लहरों में डुबो दो हर उस फूल को
जो किनारे पे मुस्कुराने की भूल कर रहा है

ज़ुर्म है, हंसना, खिलखिलाना, सपने देखना
बादलोँ में उड़ना, चन्दा-तारों की बातें करना
नासमझ है वो, उसे उसकी औकात दिखा दो

तोड़ो, मरोड़ो, हमेशा के लिए उसका अस्तित्व मिटा दो
मानवता, सहृदयता, ममता, स्नेह, खोखले शब्द हैं,
कठपुतली है वो नियति की,
नहीं उसकी अपनी कोई ज़िंदगी

बजाओ बिगुल युद्ध का, नाद प्रतिनाद में
मासूम आवाज़ दबा दो, घोंट दो उसका गला
अवसाद, विषाद, विवाद की दुनिया है ये
अपवाद बनने की भूल न करे
लताड़ो, चिंघाड़ो, जंगल के नियम कानून
भली भाँती रटा दो !!

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