Review

The Other Way by Imtiaz Ali

अभी अभी एक पोस्ट पढ़ी इम्तियाज़ अली की शॉर्ट मूवी “The Other Way” के बारे में.. देखने की उत्सुकता हुई और 14 मिनट की ये फिल्म youtube पर झटपट देख भी अाई.. कला और सिनेमा को अपनी बात कहने का पूरा हक है…. अक्सर लगता है कि आर्टिस्ट्स ही समाज और इंसान को आईना दिखा सकते हैं…

कहानी एक दुल्हन की है, जो अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने परिवार के साथ एक होटल में रुकी है.. वहां उसकी मुलाकात एक फोटोग्राफर से होती है, दोनों में कुछ इंटरेस्टिंग बातचीत होती है और लड़की ठीक शादी के दिन, दुल्हन की ड्रेस पहने उस फोटोग्राफर के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाती है.. और फिर उछलती कूदती मण्डप में लौटती है.. और पूरे कॉन्फिडेंस के साथ अपने प्रेमी/पति या फिर कहिए कि वो बेवकूफ़ जो उस के साथ सालों से प्रेम में है और अब शादी करने जा रहा है, को उल्लू बनाते हुए, हंसती हुई उसी फोटोग्राफर से अपनी wedding pic खिंचवाती है…

राइटर डायरेक्टर इम्तियाज़ इसमें क्या कहना चाहते थे, मैं नहीं जानती पर अगर उनके हिसाब से ये जीवन की सच्चाई बन चुकी है, तो बेहद शर्मनाक है… मुझे इस मूवी में कोई समानता, विरोध या फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन नज़र नहीं आया.. नज़र आया तो हम सबका गिरता हुआ कंट्रोल.. एक पल के थ्रिल के लिए किस हद तक संवेदनहीन हो सकते हैं, इसकी एक झलक दिखी..

इम्तियाज़ ने लड़की से “फ्रीडम न कोई दे सकता है, न ले सकता है” के नाम पर कुछ हैवी डायलॉग बुलवा कर, ये साबित करने की कोशिश की, कि अपने दिल की सुनने की इजाज़त सबको है, चाहे लड़की हो या लड़का..

पर सच कहूं, फ्रीडम का इस से घटिया इस्तेमाल हो ही नहीं सकता.. यहां गौर तलब बात ये कि शादी के लिए लड़की पर कोई दबाव नहीं है, वह अपनी मर्ज़ी से अपने प्रेमी से शादी कर रही है…

पर फिर भी आने वाली लाइफ में उसे अच्छी बीवी (सम्भोग के मामले में) रहना होगा, इसी बात से इतनी व्यथित है कि बिना जाने, दो दिन पहले मिले लडके से सेक्स करके खुद को आज़ाद महसूस कर रही है..

हालांकि शायद वो खुद भी नहीं जानती कि ये आज़ादी उसे चाहिए किस से? पति से, समाज से, रूल्स से या फिर खुद से?

प्रेम के नाम पर किसी वेल सेटल्ड आदमी को फंसाकर, उसकी धन दौलत पर सालों तक बीवी बनकर राज करना तो वो भी चाहती है.. ये भी चाहती होगी कि उसका होने वाला पति, उसे सुहागरात के अगले दिन ही बाहर पटक, दूसरी न ले आए.. पर खुद शादी वाले दिन भी किसी और से सम्बन्ध बनाना, उसके लिए बेहद आसान है?

कितना घटिया, कितना वीभत्स है रिश्तों का ये स्वरूप? किस स्तर पर पहुंच गए हम.. किसी रिश्ते में रहना, सिर्फ समाज का बन्धन नहीं, मन का मिलन होता है.. विवाह को लोग बहुत कोसते हैं, पर ज़रा सोचिएगा कि जो इंसान एक के साथ न निभा पाए, क्या वो दूजे, तीजे, चौथे में भी “प्रेम” ढूंढ़ पाएगा? मुझे तो अंधापन लग रहा है, अपने ही पैरों को घसीटते हुए खाई में कूद जाने की तैयारी…
Anupama Sarkar

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