Clockwise या anticlockwise? घड़ी की सुइयों से दिशा निर्धारण करना कितना सरल लगता है न!
पर क्या हो अगर कोई घड़ी उल्टी चल पड़े, क्या ज़िन्दगी भी उसके संग उलट जाएगी? क्या हो अगर आप बूढ़े पैदा हों, और प्रकृति को धत्ता बताते, धीरे धीरे जवान होते हुए बच्चे बन जाएं? आप कहेंगे कि कोरी कल्पना है ये.. ऐसा कुछ इस जीवन में सम्भव ही नहीं.. आखिर संसार के भी कुछ नियम हैं और कालचक्र उनमें सबसे महत्वपूर्ण एवम् शाश्वत…
हां, सच कह रहे हैं आप, समय अभेद्य है, उसके अनुसार ही चलना होता है, वरना अपवाद होने की कीमत अदा करनी पड़ती है.. आखिर बीज से ही वृक्ष पनपता है, अगर भरे पूरे पेड़ बीज बनने की ओर अग्रसर होने लगे तो दुनिया ही खत्म हो जाएगी…
है न?
न, दरअसल सब भ्रम है.. चक्र के मायने सही अर्थों में ढूंढें जाएं, तो ये मालूम करना कि पेड़ बीज बना या बीज से पेड़ उगा, असंभव है.. और बच्चा जवान होकर बूढ़ा हुआ, या वो बूढ़ा, जो बच्चा बन रहा है, दोनों में आखिर अंतर क्या है.. गौर से देखिएगा और सोचिएगा.. दोनों को एक ही जैसा पाएंगें…
इसी परिकल्पना को थोड़ा और विस्तार दिया डेविड फिंचर ने 2008 में रिलीज़ हुई मूवी “The Curious Case of Benjamin Button” में..
कहानी शुरू होती है 2005 की रात अमरीका में आने वाले Katrina नाम के तूफान से.. बाहर ज़ोरों से बिजली चमक रही है, तेज़ हवाएं चल रही हैं और वहीं शहर के एक अस्पताल में Daisy अपनी आखिरी सांसें गिन रहीं हैं.. काफी बूढ़ी हैं वे, बमुश्किल अपनी बेटी कैरोलिना से बात कर पाती हैं.. पर ज़िंदगी के आखिरी पलों में भी कुछ ऐसा है, जो वो अपनी बेटी को बताना चाहतीं हैं.. कहे बिना उनके प्राण नहीं जायेंगें, ये बात वे अच्छी तरह जानती हैं..
कैरोलिना के हाथ में एक पुरानी डायरी थमा, वे उसे ऊंची आवाज़ में पढ़ने को कहती हैं और इस तरह शुरुआत होती है एक ऐसी कहानी की, जहां कुछ भी सीधा सपाट नहीं..
रेलवे स्टेशन पर लगी घड़ी, विपरीत दिशा में दौड़ रही है, 1911 की खुशनुमा रात है, प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति का जश्न मनाया जा रहा है और उसी वक़्त न्यू ऑर्लींस के एक छोटे से अस्पताल में नामी गिरामी Buttons फैमिली के घर में एक बूढ़ा बच्चा पैदा होता है.. जी, एकदम बूढ़ा, मुंह पर झुर्रियां, न आंखों से देख सकता है, न कानों से सुन सकता है.. शक्ल ऐसी मानो इंसान का बच्चा ही न हो.. Mrs Buttons बच्चे के पैदा होते ही दम तोड़ देती हैं और खौफ़ज़दा Mr Buttons बच्चे को वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर छोड़ भाग खड़े होते हैं..
उसके बचने की कोई संभावना नहीं पर वहां काम करने वाली, Queenie और Mr Weathers उसे अपना लेते हैं और नाम रखते हैं Benjamin.. बेंजामिन बूढ़ा दिखता है और अपने ही जैसे और बूढ़ों से घिरा हुआ है.. उसे लगता है कि वो भी एक बुज़ुर्ग है और अपनी मौत का उसी तरह इन्तज़ार कर रहा है जैसा कि आश्रम के बाकी निवासी.. हालांकि उसकी बाल सुलभ जिज्ञासा, उसे एक जगह टिकने नहीं देती और अपनी ज़िंदगी के पहले 7 साल वो एक अजब कश्मकश में बिताता है.. शरीर से 80 साल का बूढ़ा और मन से छोटा सा बच्चा, बेंजामिन की मुलाकात Daisy से होती है, जो अपनी दादी से मिलने अक्सर आश्रम में आती है.. जल्द दोनों दोस्त बन जाते हैं, और पहले दिन से बेंजामिन को मालूम है कि वो इस लड़की के प्यार में है.. यहां मुझे Forrest Gump याद आ गया.. वो भी कुछ यूं ही एक सामान्य लड़की से प्यार कर बैठा था पर उसे अपने औरों से “अलग” होने की कीमत चुकानी पड़ी थी..
पर Benjamin Button, Forrest की तरह बुद्धू नहीं, बल्कि पूरी समझ बूझ लिए पैदा हुआ बूढ़ा आदमी है.. इसलिए ये फिल्म उस मूवी से बिल्कुल विपरीत दिशा में दौड़ती है.. बेंजामिन धीरे धीरे जवान होने लगता है, उसके बाल बढ़ने लगते हैं, शरीर में ताक़त आने लगती है और वो इस दुनिया को जीतने और जीने में उतना ही उत्साहित नज़र आता है, जितना कि कोई सामान्य टीनएजर..
पर क्या ये इतना आसान हो सकता है, जब भी आप मुख्यधारा के विपरीत चलते हैं, आपको मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.. तन और मन में समन्वय न हो तो जीवन बेहद कठोर हो जाता है, ये बात जितनी अच्छी तरह इस मूवी में जतलाई गई, शायद ही आपने कभी पहले महसूस की हो..
मौत को हर पल सामने देखना, किस कदर जीने के अहसास को पुख़्ता कर देता है, ये बेंजामिन से बेहतर कोई नहीं जान सकता.. जिसके पैदा होने पर ही मृत्यु की घोषणा कर दी गई हो, उसका जीवन संग कदम मिलाकर चलना हतप्रभ करता है…. और वहीं बेंजामिन और डेज़ी का प्रेम प्रसंग इस बात की पुष्टि करता है कि प्यार पर कोई बन्धन हो ही नहीं सकता.. हां, हम ज़रूर अगर मगर ताकि बाकी, लगाकर अपनी ज़िंदगी को कॉम्प्लिकेटेड कर बैठते हैं.. और अंत समय आते आते पछतावे में डूब जाते हैं पर ये फिल्म तो है ही अंत से शुरू.. सो बेंजामिन की ज़िंदगी में गिल्ट के लिए कोई जगह नहीं..
Daisy की भूमिका में Kate Blanchett हैं, जो एक बैले डांसर से लेकर बूढ़ी औरत तक का रोल बेहद संजीदगी से निभाती हैं.. हां, Brad Pitt को गंजे, बिना दांत के बूढ़े के रूप में देखना, थोड़ा अजीब लगा था.. पर धीरे धीरे वे अपने ग्लैमरस रोल में लौट आते हैं.. 40 साल के करीब दोनों शादी करते हैं, लगभग एक उम्र के हैं पर बेंजामिन बूढ़े से जवान हुए हैं और Daisy जवान से बूढ़ी.. इस मोड़ पर दोनों की अपनी insecurities हैं, जो बेहद संवेदनशील तरीके से स्क्रीन पर झलकती हैं..
क्या तन से छोटे होते जाने के बावजूद, बेंजामिन कभी अपनी ज़िंदगी खुशहाली से बिता पाएगा, ये सवाल मुझे रह रह कर कचोटता रहा.. और फिल्म के अंत तक आते आते, आंसुओं से धुला चेहरा, इस बात की गवाही दे रहा था कि दिशा कोई भी हो, हम हर पल मरते हैं.. शिशु से वृद्ध होकर मरें या फिर भरपूर जीवन जीने के बाद, धीमे धीमे बच्चे होते हुए जाएं.. ज़िंदगी उतनी ही मुश्किल और चुनौती भरी है.. शायद कालचक्र के उलटे और सीधे होने का अंदाज़ा लगाया ही नहीं जा सकता.. हम बस गोलाकार में भाग रहे हैं.. आरम्भ और अंत एक ही बिन्दु पर होगा…
बहरहाल, मूवी मुझे रुलाने के बावजूद, ज़िंदादिली की मिसाल लगी.. 2 घंटे की मूवी में आप कहीं भी बोरियत महसूस नहीं करेंगें.. हालांकि आखिरी कुछ मिनटों में फिल्म की गति अपेक्षाकृत तेज़ रही.. पर भावनात्मक जुड़ाव और मोमेंटम बना रहा.. ये उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जहां आप हर सीन में कुछ सोचते हैं.. आंखें स्क्रीन पर गढ़ी होने के बावजूद, आपका दिमाग एक अलग ही कहानी पैरलेल पेस पर चलाता रहता है और आप उन पहलुओं से ज़्यादा जुड़ जाते हैं, जो कि आपके निजी अनुभवों के करीब होते हैं.. कुल मिलाकर एक ऐसी फिल्म, जिसे हर दर्शक अपनी समझ और सोच के अनुसार ही ग्रहण करता है..
इतने लंबे रिव्यू के बाद कहना न होगा कि फिल्म मुझे कितनी पसंद अाई.. इसकी कहानी Scott Fitzgerald की शॉर्ट स्टोरी The Curious Case of Benjamin Button पर आधारित है.. और अब ये कहानी मेरी TBR लिस्ट में सबसे ऊपर.. घड़ी की विपरीत दिशा किस तरह जीवन की दशा बदल सकती है, ये समझना हो तो एक बार मूवी ज़रूर देखिएगा.. नाउम्मीद न होंगें..
Anupama Sarkar
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