One of my very first poems n A personal favorite
यूं ही चहलकदमी करते-करते अहसास हुआ
कितनी करीब हो तुम मेरे, इसका आभास हुआ।
हर सुख में, हर दुख में, हर दर्द में, हर गर्त में
तुम्हीं तो थी साथ मेरे, मज़बूती से थामे हाथ मेरे।
बचपन में जब सखियां खेल-खेल में रूठ जातीं
तुम ही होती मेरी संगिनी, प्यार से बाल सहलाती।
जब-जब टीचर गुस्से में, डांट के चली जाती
तुम ही देती मुझे दिलासा, प्यार से पीठ थपथपाती।
हर विफलता के बाद, जब मैं रोती छुप-छुप के
तुम ही आती हल्का करने, दिल का दुखड़ा सुन-सुन के।
सपने बिखरे, अपने बिछुड़े, जाने कितने उपद्रव हुए
पर तुम थी सदा साथ मेरे, मज़बूती से थामे हाथ मेरे।
सर्दी में लिहाफ़ बनके, गर्माहट दे जाती तुम
गर्मी में पंखा बनके, जीवन सुखमय बनाती तुम।
तुम्हारे संग ही झूला झूला, मैंने सावन भादों में
तुमसे ही मिली प्रेरणा, जो न थी उन टूटे वादों में।
दिन बीते, महीने ज़ाया हुए, बरसों की मेहनत
पर भी मैंने लीपापोती कर डाली।
पर तुमने साथ न छोड़ा मेरा, तुम कभी न घबराई।
जब कभी अपनों से लड़के, बेगानों से झगड़ के
रूठ के, थक के बैठ जाती।
तब तुम्हीं होती साथ मेरे, मज़बूती से थामे हाथ मेरे।
सच है, मेरी प्यारी सहेली
ऐ तन्हाई! तेरे बिन मैं कितनी अकेली।
Anupama
Recent Comments