आज आसमान एकदम साफ़ नज़र आ रहा है
चमक रहे हैं असंख्य तारे
जैसे कारी चुनरी पे काढ़़ दिए हों ढेरों सितारे
पहले पहल तो बस
कुछ सात आठ ही दिखे
पर जब ध्यान लगाया तो पाया जग सारा
एक के साथ अनेक का लगाते नारा
कुछ पास कुछ दूर
कुछ महिमा मंडित कुछ दर्प में चूर्ण
कुछ भोले से कुछ शैतान
कुछ ठहरे से कुछ अनजान
कभी टिमटिमा कभी जगमगा
मेरे मन को लुभा रहे हैं
ये तारे जाने कितने रोज़ बाद नज़र आ रहे हैं।
Anupama
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