Hindi Poetry

वो आग का गोला

अभी अभी सूरज को भगा के आई हूँ
पश्चिम के अंधेरे कोने में दबा के आई हूँ
पर है बड़ा ही ज़िद्दी
जानती हूँ कल पूरब से फिर आ धमकेगा
हंसता मुस्कुराता आग बरसाता
कोई बात नहीं हम भी तैयार हैं
बादलों का झुंड लिए!

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