शब्दों को उलट कर देखा
बातों को पलट कर देखा
सुकूँ न था न मिला
हंसी के फव्वारे देखे
जन्नत के नज़ारे देखे
न न सुकूँ न मिला
फूलों की ज़मीं पर
तारों को बिछाकर देखा
सूरज की कशिश में
मन को पिघलाकर देखा
फिर भी… न न न…
यकायक इक अक़्स झिलमिलाया
इन खामोश निगाहों में
सुकूँ वही है वहीं मिला
Anupama
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