सुबह का सूरज उम्मीद के पंख लिए आता है… रात की कालिमा को भोर की लालिमा से हरता…
पंछियों के गुंजन से सुप्त चेतना को धीमे से जागृत कर.. बदलियों की टुकड़ियों के ठीक पीछे, हौले से मुस्काता..
हल्दी का टीका, माथे पर धर, बांका सूरज… चला है रात रानी की अधखिली कलियों को मदमाता…
रात्रि स्वप्न मिटते कहां, रूप बदलते हैं केवल.. हौले से कहता, जी चुके बहुत रात के गुमनाम अंधेरों में… अब दिन के उजास में गुलाब सा खिलना…
हर क्षण शीर्ष पर हो तुम… हर बिंदु इक नया शिखर…. हर दिन एक और मौका… कि जब तक जिजीविषा है, जीवन है, आशा है, विश्वास है…
सुबह का सूरज उम्मीद के पंख लिए आया है.. इसका स्वागत मुस्कुराते हुए करना…..
Anupama
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