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सोवियत नारी

आप में से किसी को “सोवियत नारी” याद है? बढ़िया क्वालिटी का पेपर, रंग बिरंगी तस्वीरें और जाने कितने ही लेख और कहानियां.. 80 के दशक में घर घर पहुंची थी ये पत्रिका.. रूस और भारत की दोस्ती के दिन थे वो.. मीखेल गोर्बाचोव इंडिया आए थे, राजीव गांधी के साथ उनकी तस्वीरें उस वक़्त के न्यूजपेपर्स की हेडलाइंस हुआ करती.. बहुत छोटी थी, इन राजनीतिज्ञों से कुछ लेना देना नहीं था, सिवाय इसके कि दोनों नेता दिखने में बहुत इंप्रेसिव लगते थे ☺️

और वैसे भी मेरे बाल मन का USSR से परिचय पॉलिटिक्स या geography ने नहीं, बल्कि दो खूबसूरत मैगज़ीन्स ने करवाया था.. पहली सोवियत नारी, जिसमें रशियन कहानियां और खूबसूरत कढाई बुनाई के पैटर्न होते.. और दूसरी मीशा, जिसमें बच्चों के लिए ढेरों इलस्ट्रेटेड बाल कहानियां होती.. तोलस्तोय, चेकव और न जाने कितने ही रशियन राइटर्स से मेरा पहला परिचय इन्हीं पत्रिकाओं ने करवाया था..

शायद 3 साल की मेंबरशिप थी हमारे पास, लगभग हर महीने किताबें आती.. और मैं 9 साल की लड़की, बड़े लोगों की पत्रिका को चाव से पढ़ने में खो जाती.. एक बार रशियन भाषा सिखाने का फीचर भी शुरु हुआ था उसमें.. पर अफसोस जल्द ही मैग्जीन्स आनी बन्द हो गईं थीं.. और मेरे किश्त दर किश्त लंबी कहानियां पढ़ने का सिलसिला भी थम सा गया था..

याद आता है कि मम्मी ने सोवियत नारी की बहुत सी कटिंग्स सम्भाल कर रखी थीं.. embroidery और knitting वाले पैटर्न.. दूसरी मैगज़ीन मीशा इंग्लिश में होती थी, भाई को चटखारे लेकर हिंदी करके सुनाती थी, जाने कितनी बार गलत अनुवाद ही किया होगा, पर फिर भी हम दोनों के लिए उसका अलग क्रेज़ था..

आज यूं ही दिमाग में घूमी ये बात.. गूगल पर सर्च किया तो मालूम हुआ कि Soviet Woman के नाम से छपने वाली ये पत्रिका 1945 से लेकर 1991 तक अनवरत चली, जब तक कि USSR का स्वरूप नहीं बदल गया.. वुमन यूनियंस जो छापती थीं इसे..

पर इसका पॉलिटिकल एंगल तो कभी सोचा भी नहीं था.. हां लिटरेरी मैगज़ीन के रूप में ये मेरे बचपन की बड़ी मीठी याद है.. जबकि सोवियत संघ का होना न होना, कभी ध्यान में भी न आया.. शायद हम इतिहास में भी वही याद रख पाते हैं, जिस से हम किसी न किसी रूप में जुड़े हों, बाकी सब मेमरी से डिलीट!

और वहीं वर्तमान में होने वाले अधिकतर इवेंट्स को रजिस्टर भी नहीं कर पाते, जब तक कि वही बातें, एक अलग परिवेश में हमारे सामने न आ जाएं.. इतिहास पल पल बन रहा था, है और रहेगा, बस हम ही आंखें मूंदे बैठे हैं.. जाने कब कहां प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में हिस्सेदारी करते! अनुपमा सरकार

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