निश्छल आँखें खारे आंसू
भोली मुस्कान बिखरे बाल
शरारती भवें पसरे हाथ
सड़क किनारे पलते
उस बचपन को देखकर
सीने में हूक सी उठती है
कर्मों का लेखा जोखा
ईश्वरीय चमत्कार
सामाजिक न्याय
खोखले से शब्द
कलेजे में
पिघले शीशे से
उतर आते हैं
और सोचने लगती हूँ
कुछ आरम्भ
अंत कोख में लेकर
जन्मते हैं
Anupama
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