अनमोल यादों का मोल क्या चुकाया जा सकता है…..बेमोल मिल जाएं तो ही सहेजी जा सकती हैं स्मृतियां ….वर्तमान के तराजू में गुज़रे कल के चिन्ह और आने वाले कल के मीठे पलों को अक्सर होड़ लगाये देखा है…..जीत-हार के लिए नहीं…. इस मन पर एकाधिकार जमाने को……पर भूतकाल भारी पड़ जाता है ज़्यादातर …..जो बीत चुकी आकार ले चुकी…..वज़नी है…..भविष्य का कहां भरोसा…. निराकार ही रह गया तो……वैसे भी सपने बुलबुलों से हल्के होते हैं….यादों के सामने टिकें भी तो कैसे..
Anupama
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