Hindi Poetry

निद्रा

आंखें मूंदकर नींद का इंतज़ार करना भी
एक अजीब सज़ा है।

दिमाग सौ की रफ्तार से भाग रहा है
दिल जाने किन यादों में डूबे जा रहा है
और दिलोदिमाग की इस कशमकश का
पूरा फायदा निंदिया रानी उठा रही हैं।
जैसे कोई शिशु आनंदित हो इस बात से कि
कोई तो है जो उसका पीछा कर रहा है।

नींद ही नहीं आएगी तो स्वप्न कैसे देखूंगी
स्वप्न न होंगे तो लक्ष्य कैसे साधूंगी
लक्ष्य ही न होगा तो जीऊँगी कैसे?
अब तो आ जा निद्रा देवी
पलकों पर ढुलक, कर मन को शांत
दे मुझे असीम सुख का वरदान
ताकि कर सकूं सुबह एक नए दिवस का संधान!

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