Hindi Poetry

शब्दताल

गहरे उतरूं शब्दताल में
स्वर व्यंजन से टकराऊं
सामने डोले तेरी सूरतिया
सुधबुध मैं खो जाऊं
इक मूरत से लगन लगी
छैनी सी कलम चलाऊं
पर फिसले ये मन बावरा
बारीकियों में उलझी जाऊं
मुझे न गढ़नी कोई मुरतिया
न लिपियों की शैली ही बुननी
बस कण कण जोडूं बालू गीली
सपनों का महल सजाऊँ !!
Anupamatextgram_1470896734

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