Kuch Panne

शब्द

“जब अंधकार हद से गुजर जाए सवेरा नज़दीक होता है। बड़े बूढ़ों ने कहा था। कभी आज़माया नहीं।”

लगभग चार साल पहले लिखीं थीं ये पंक्तियां, किसी मुड़े तुड़े कागज़ के टुकड़े पर… शायद तब उजाले की उम्मीद में जीती थी.. नहीं जानती थी कि अंधकार भी उतना ही प्रेरक है जितना कि प्रकाश.. या यूं कहूँ कि दोनों ही अपने आप में सम्पूर्ण हैं.. कुछ अलग है तो केवल बदलाव.. ठंडी अंधेरी रात के बाद सुबह की धूप गुदगुदा जाती है तो जलती दोपहर के बाद शाम का धुंधलका हौले से सहला जाता है… बस यही है जीवन, उतार चढ़ाव और आशा निराशा की बदलियों में झूलता हुआ…

पिछले दो तीन दिनों में फिर से इस बात का एहसास हुआ… रचनाओं का चोरी होना कोई नयी या अनोखी बात नहीं.. पर सच कहूँ तो हर बार उतनी ही चुभती है.. शब्द भाषा के होते हैं, पर भावनाएं लेखक की.. जब तक पाठक पठन, मनन, चिंतन से उन भावों को आत्मसात न कर ले.. उनका उठाकर किसी भी जगह बेनाम रख दिया जाना या किसी ओर के द्वारा अपना कहा जाना, खलता ही है.. पुष्प चरणों में समर्पित हुए या हाथों का सिंगार बने, ये बात महत्वपूर्ण नहीं.. पर वे किस ड्योढ़ी चढ़े, वो मायने रखता है..
Anupama

Leave a Reply