सेमल के फूल देख आज आप बहुत याद आए
देख लाल पुष्प मानस पटल पर कई चित्र उभर आए।
याद आया वो गुज़रा ज़माना
जब ये फूल हमारी सैर का हिस्सा होते थे
उनका आकार प्रकार एक नया किस्सा होते थे।
पूछते थे लोग अक्सर क्यों धूप में यों भटकती हो?
कहां जाती हो तुम दोनों आखिर क्या करती हो?
क्या बताते क्या पाते थे हम उस आधे घंटे में
बेसिरपैर की गप्पों में दादी के घरेलू नुस्खों में!
यूं तो बहुत कुछ कहा करते थे
पर अक्सर चुप रहकर
प्रकृति को ही सुना करते थे।
सहलाते थे पत्ती पत्ती फूलों की बातें करते थे
गूलर के फल तोड़ते नित नये किस्से गढ़ते थे।
आज याद आता है वो यूं ही भटकना
एक दूजे से चुप रहके भी बातें करना।
कभी कनखियों के इशारे थे
कभी हंसी के फुव्वारे
कभी एक मौन सन्वेदना
कभी स्वाद भरे चटखारे।
ये सब थे और थे वो सेमल के फूल
हमारी दोस्ती के मूक प्रमाण
सुगंध रहित क्षत विक्षत पेड़ को
देते एक नई पहचान!
आज फिर वही फूल नज़र आए
यकीन मानिए आप हमें सामने खड़े नज़र आए।
जीवित हो गया गुज़रा ज़माना
छू गया दिल को एक दोस्त पुराना
वही सेमल के फूल और आपका आना!
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