आज बरसों बाद सरकारी स्कूल में जाना हुआ… पुराने ब्लैक बोर्ड पर नया वाला पेस्ट कर रखा था… दीवारों पर पलस्तर उखड़े, पंखे ढुलमुल सी चाल चलते.. और खिड़कियों पर धूप और बारिश से बचाव के लिए टूटे शीशों पर मोटी प्लास्टिक शीट चढ़ी हुई… कुल मिलाकर लीपा पोती कर काम चलाने वाले हालात थे..
पर जानते हैं, वहां बच्चों द्वारा बनाए कुछ चार्ट्स लगे थे.. आढे तिरछे,पर कल्पना की सीधी उड़ान भरते.. एक में रोकेट बना रखा था, और साथ ही ऊंचे से प्लैटफॉर्म पर खड़ा, एक स्माइलिंग एस्ट्रोनोट भी… आखिर सपनों पर बंदिशें थोड़े न हैं..
वहीं दूसरा चार्ट लगा था, जिसमें एक पेड़ बना रखा था, सिर्फ और सिर्फ अंगूठे और हथेलियों के निशान से..
अवाक थी मैं, नन्हे हाथों की कलाकारी देखकर.. स्कूल बंद था, वे छात्र भी नहीं थे वहां, पर सच कहूं मुझे फिर भी उनकी किलकारियां सुनाई दे रही थीं.. एक टीचर से साझा कर आयी ये बात, वे मुस्कुरा उठे.. कहने लगे कोशिश तो पूरी करते हैं हम कि अभाव में भी अहसास जीते रहें… दीवारें बता रही थीं कि उनकी कोशिश सूनी आंखों में रंग भर रही है.. लाख कमियां निकालें हम सरकारी तंत्र में, पर की ज़िंदगियां उन्हीं से आबाद हैं..
फोन अलाऊड नहीं था वरना तस्वीरें ज़रूर लेती.. फिलहाल तो मन में एक पोजी़टिव इमेज संजोए आ गयी हूं…
Anupama
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