कल सोचा था, अब नहीं लिखूंगी.. क्यों उन विषयों पर लिखूं, जिनके बारे में हर पढ़ा लिखा इंसान, अखबार, टीवी, इंटरनेट पर थोड़ी सी मेहनत करके जानकारी हासिल कर सकता है.. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुकी, सबको मानना ही है… मन्दिर के बोर्ड ने भी कहा, कि उन्हें फैसला मंज़ूर है.. महिलाएं अब स्वतंत्र हैं कि वो अयप्पा के दर्शन के लिए sabrimala मंदिर में कभी भी जा सकें.. ठीक है भाई, PIL लगी, फैसला आया, मंज़ूर भी हो गया.. तो फिर हंगामा किस बात का…
पर न जी, न्यूज़पेपर से लेकर फेसबुक तक फिर से चीख पुकार.. कैसे कैसे जुमले पढ़ लिए कि “जस्टिस इंदु मलहोत्रा महिला होकर क्यूं, इस फैसले में 4 पुरुष जज से अलग बोलीं.. ऐसा पक्षपात दिखा दिया उन्होंने, ज़रूर इसलिए कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है.. वगैरह वगैरह”
अरे भाईसाहब/बहनजी, सबसे पहली और ज़रूरी बात तो ये कि इंदु जी जस्टिस की हैसियत से 5 जज के बेंच का हिस्सा थीं, महिला होने की वजह से नहीं.. उन्होंने वहां जो भी लिखा, कहा, बहस की, एक न्यायाधीश, एक कानूनी जानकार के हिसाब से.. इसलिए उनकी कही बातों को “महिला ने कैसे कह दिया” जैसे इल्ज़ामों से नवाज़ना बन्द कीजिए…
उनके disagreement की वजह निहायत साफ है “जब तक किसी महिला दर्शनार्थी ने सबरीमाला मन्दिर में प्रवेश करने से मना करने की शिकायत को लेकर SC को अप्रोच नहीं किया है, तब तक सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप से बचना चाहिए, क्योंकि हमारा ही संविधान अपने अपने धर्म को अपने तरीके से मानने और प्रचारित करने का अधिकार भी हर नागरिक को देता है”
अब बताइए क्या गलत बात कही उन्होंने? अपना पक्ष ही तो रखा… आप सब भी तो दिन रात फेसबुक वॉट्सएप पर यही कर रहे हैं.. अब क्या किसी को मुंह खोलने से पहले ये सोचना होगा कि वो महिला है या पुरुष.. कौन सी कैटेगरी, कौन से धर्म, कौन सी जात के हैं.. कहीं ऐसा कुछ तो नहीं बोल रहे कि उनके साथी माने Physically, Religiously, Regional, Caste, Creed वगैरह वगैरह में जो उनके जैसे हैं, विपक्ष में बोलते ही खिलाफ तो नहीं हो जायेंगें!
अरे, हद करते हैं आप! फ्रीडम ऑफ स्पीच भी मत छोड़ना, जजों के पास भी नहीं, आम औरत की तो बिसात ही क्या!
और हां, जहां तक सबरीमाला मन्दिर में या किसी भी रिलिजियस प्लेस में एंट्री को लेकर होने वाले विवादों की बात है, तो याद रखिए धार्मिक जगह, एक खास तरह के लोगों और उनके द्वारा प्रचलित नियमों से चलती हैं, वहां जाइए, अगर आपको उनके द्वारा बनाए व चलाए नियमों पर विश्वास हो, नहीं तो मत जाइए.. टूरिस्ट प्लेस नहीं हैं वो… मैं तो कभी वहां न जाऊं, जहां मेरा स्वागत नहीं… बाकी आपकी मर्ज़ी…
भगवान किसी जगह की बपौती नहीं, आप सबके अंदर हैं, वहीं पूज लीजिए ना.. बेमतलब के विवाद और उस पर वाद खड़े करके क्यों अपेक्स कोर्ट का काम बढ़ा रहे हैं.. और फैसले आने के बाद उनका मज़ाक भी बना रहे हैं.. कमाल है…
Anupama Sarkar
#SabrimalaVerdict
#FreedomOfSpeech
Recent Comments