सर्दियों की सुबह, धुंध का घूंघट औढ़े, शर्माती नवयौवना सी, धीमे धीमे मेरे आंगन में उतर आती है.. हवा में हल्की ठंडक है.. शाल को कसकर लपेट लेती हूं.. मुंह से धुआं छोड़ने का प्रयास अभी कामयाब होता नहीं दिखता.. पर बाहों पर उभरते रोंगटे अहसास दिलाते हैं कि गुलाबी सर्दियां चली आयीं हैं… चाय की गरम चुस्कियों संग मसालेदार पोहे की मिर्ची, ज़ुबां पर हौले से कड़कती है… ढेरों बातें करने का मन है.. जी चाहता है, बस यूं ही बैठी रहूं, वक़्त के हिंडोले पर झूमते, बेफिक्री के अलाव में हाथ सेंकते.. तभी ध्यान बरबस घड़ी की ओर चला जाता है.. नौ बजने को हैं… भागम दौड़ शुरू होने को.. बहुत विचर चुकी स्वप्न प्रांगण में… जीवन की व्यस्तता उठने का मनुहार कर रही है… मन कोसा हो चला है… रूटीन भी कमाल की बला है…….
………… Anupama
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