सागर सा लगा आज आसमां
बादलों की लहरों से छितरा।
कभी अपने पास बुलाता
कभी भोले मन को डराता।
अजब उफान था
रूई के उन फाहों में
सिमट रहा हो दिनकर
ज्यों कोहरे की बांहों में।
धुंआ सा फैला चहुँ ओर
उम्मीदों का अरमानों का और..
और
शायद आने वाले तूफानों का
आखिर, आसमां में कश्ती चलाना
कोई आसां तो नहीं!
Anupama
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