Review

Ray, Netflix

Ray: सत्यजीत रे की कुछ कहानियां पढ़ी थीं, फिर छोड़ दीं। कुछ बहुत अच्छी लगीं कुछ एकदम असंभव, पर एक बात जो कॉमन थी, वो ये कि हटकर थीं, सामान्य सोच समझ से परे, कल्पना के चरखे पर तिलिस्म कातते हुए!

सो जब मालूम हुआ कि नेटफ्लिस पर Ray सिरीज़ दरअसल, सत्यजीत की कहानियों पर बेस्ड है, तो जाहिर सी बात कि मैं नमकीन, चाय का जुगाड़ करके बैठ गई स्क्रीन के सामने। पहली कहानी की शुरुआत कुछ अजीब लगी, भागमभाग और सस्पेंस का जाल एक साथ बुनते हुए। धीरे धीरे कहानी में मन रमने लगा, अली फ़ज़ल एक्टिंग अच्छी कर लेते हैं, बस उनका physique उन्हें जबरदस्ती मुन्ना के किरदार में उलझाए रखता है, पर इसके बावजूद, यहां वे काफ़ी हद तक Forget Me Not के इप्सिट को सजीव करते लगे। हालांकि अंत भी उतनी ही भागदौड़ में हुआ जितनी कि शुरुआत। किरदारों और पटकथा को थोड़ा और पकाया जाता, तो डिश वाकई कमाल हो सकती थी!

खैर दूसरी कहानी शुरु हुई, के के मेनन के बहरुपिए के साथ। मैने यह कहानी कभी बहुत पहले पढ़ रखी थी, तो कदम कदम पर एहसास होता रहा कि आगे क्या होगा। मेनन मंझे हुए कलाकार हैं, कहानी में दम है ही, बस डायरेक्शन में थोड़ी सी कोर कसर बाकी लगी कि किसी और किरदार को लाइमलाइट में आने का मौक़ा ही नहीं मिला।

तीसरी कहानी “हंगामा है क्यों बरपा” इस सीरीज की सबसे सशक्त कड़ी कहने के काबिल है। जबकि यहीं सबसे कम गुंजाइश थी। पूरी कहानी रेल के एक डिब्बे तक सीमित पर उसके बावजूद डायरेक्टर की execution capability को सलाम, मनोज का आईने में खुद को देखना, काल्पनिक श्रोताओं का आना और महफिल का जम जाना, बस कमाल था ये, एक विनिंग स्ट्रोक। गजराज राव और मनोज बाजपेई, दो कद्दावर कलाकारों की तरह कुश्ती के दांव खेलते रहे, और मैं मंत्र मुग्ध सी Ray की दुनिया में डूबी रही। सही मायनों में यही कहानी सत्यजित के रचना संसार की कसौटियों पर खरी उतरी।

अब आखिरी कहानी, spotlight, न होती तो अच्छा था, और कम से कम आखिरी रखी गई, ये बहुत बहुत अच्छा। कहानी में हीरो को जितना बुरा अभिनेता दिखाया जाना था, हर्षवर्धन कपूर उस से थोड़े ज्यादा ही दिखे। हालांकि अंत होते होते हंसी छूट गई थी, पर वो प्लॉट की सफलता थी, कुछ और नहीं।

सो Ray देखना चाहें तो ज़रूर एक अच्छा टाइम पास है, पर सत्यजित रे की कहानियां हैं, ये सोचकर मत देखिएगा, खासी निराशा होगी। कुल मिलाकर एक कोशिश जो थोड़ी सफल हुई पर काफ़ी गुंजाइश छूट गई… अनुपमा सरकार

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