Review

Qarib Qarib Singlle, Movie, Review

कुछ मूवीज़ अपने नाम को पूरी तरह चरितार्थ करती हैं.. कल ही देखी करीब करीब सिंगल, इरफान खान और पार्वती मेन कास्ट और एक छोटा सा रोल नेहा धुपिया का..

जब फिल्म देखनी शुरू की, तो लगा शायद काफी हटकर है.. जया (पार्वती) एक प्रोफेशनल इंडिपेंडेंट वुमन हैं, और कुछ साल पहले गुज़र चुके अपने पति मानव की यादों के सहारे जी रही हैं.. या फिर कहूं कि समाज में खुद की इमेज बनाए रखने के लिए अपने से समझौता किए बैठी हैं.. उन्हें डेटिंग साइट्स से सख़्त चिढ़ है, अपनी सेक्रेटरी का मज़ाक उड़ाते उन्हें देखा जा सकता है.. वहीं खुद को अच्छी दोस्त और पड़ोसन दिखाने के चक्कर में दूसरों से स्टेपनी की तरह ट्रीट किए जाने पर कुढ़ती हैं.. कह सकते हैं कि ज़बरदस्ती एक नैतिक आवरण औढे बैठी हैं..

पर आखिर इंसान अपनी भावनाओं को दबाए कब तक जी सकता है.. सो एक रात, गुपचुप जया अपना अकाउंट “अब तक सिंगल” नाम की dating साइट पर बनाती हैं.. और आंखें मूंद, डरते हुए मैसेजेस के आने का इंतज़ार करती हैं.. कुछ घटिया (!) मैसेजेस के बाद फाइनली उन्हें योगी नाम के एक शायर का रिक्वेस्ट आता है.. डेट के लिए पूछने का जुदा अंदाज़ कि “अगर मेरी प्रोफ़ाइल अच्छी लगी हो तो किसी कॉफी शॉप का बिल बढ़ाएं?” उनकी दिलचस्पी उस शख़्स में जगा देता है..

दूसरे दिन कॉफी शॉप में खुद से जूझते हुए, वे इंतजार करती हैं योगी उर्फ इरफान खान का.. एक सोफिस्टिकेटेड वुमन, जो स्पेशली पार्लर जाकर hairstyle बदलवाकर अाई, कि फर्स्ट इंप्रेशन अच्छा होना चाहिए.. सोचिए ज़रा, उसे टकराता है, ट्रैक सूट पहने, पसीने में भीगा, वेटर को “बेटा जी” कहकर पुकारने वाला हरफनमौला इरफ़ान, जो बात बात पर शायरी तो करते हैं, पर अपनी किताबों के बिकने की कोई उम्मीद नहीं पालते..

मूवी शुरू हुए अभी दस मिनट भी नहीं हुए, और मेरे सामने खुलकर जीने वाले योगी और कश्मकश में उलझे रहने वाली जया, अपनी अपनी बेतरतीब ज़िन्दगी के तार सुलझाने में लगे हैं.. यहां तक मुझे इस स्टोरी से बहुत उम्मीदें बंधने लगी थीं.. आखिर फिल्म मेकर्स कॉलेज रोमांस और बड़जात्या फैमिली ड्रामा टाइप रिलेशनशिप्स से आगे की सोचने तो लगे.. दो वयस्क बिना किसी लाग लपेट के, मैरिज को फोकस में रखते हुए, एक दूसरे को जानने समझने की कोशिश करें, इस mature decision की हमारे hypocrite समाज में ज़रूरत तो है.. करीब करीब सिंगल, मुझे इसी आधुनिक बदलाव की मिरर इमेज नज़र आने लगी थी..

पर अगले ही पल, इरफ़ान तब्दील हो गए, कल्पनाओं में जीने वाले एक टीपिकल मर्द में, जिसे बार बार, हर बार सच्चा इश्क़ हो जाता है (रियली !) वे तीन गर्लफ्रेंड्स के किस्से बहुत शान से बयान करते हैं.. ये बात और कि वे तीनों से ही बिना closure के भाग लिए थे.. और खासकर पहली वाली तो कभी उनके प्रेम में थी भी नहीं… पर पुरुष मानसिकता, लड़की साथ हंसी तो प्यार करती है, वाली बात को सीने से लगाए योगी/वियोगी साहब, जया का मज़ाक उड़ाते दिखते हैं, जो अब अपने मृत पति के नाम को पासवर्ड बनाए बैठी है..

कहना न होगा, करीब करीब यहीं से मूवी फिसलने लगी.. उसके बाद अजब सी ड्रामेबाजी कि पार्वती और इरफ़ान अपने गर्लफ्रेंड्स/बॉयफ्रेंड से एक दूसरे को मिलवाते हुए, एक दूजे के लिए पजेसिव होने लगते हैं.. अच्छी खासी शुरुआत के बाद, ये कहानी हर बार पटरी से उतरती चली गई… इरफ़ान अपने किरदार को ढोते से नज़र आने लगे, और पार्वती अपनी लिमिटेड एक्टिंग स्किल्स के चलते बेहद बोरिंग… इमेजिन कीजिए, मुझे नेहा धूपिया का पांच मिनट का रोल ज़्यादा जेनुइन लगा.. इरफ़ान की दूसरी गर्लफ्रेंड के रूप में वे उसे पैसों की वजह से छोड़कर, एक अमीर आदमी से ब्याह कर चुकी हैं.. और पूरे ऐशो आराम मिलने के बाद, एंटरटेन होने के लिए योगी जैसे शायर का साथ चाहती हैं.. मोरली बहुत गलत, पर शायद समाज का एक लुका छुपा सच, नेहा मुझे जीती नज़र आयीं..

इसके बाद की कहानी हद से ज़्यादा प्रेडिक्टेबल और बोरिंग थी.. करीब करीब ये मूवी सफल हो सकती थी, पर हुई नहीं.. करीब करीब ये कहानी, आज का सच बन सकती थी, पर बनी नहीं.. करीब करीब तनुजा चन्द्रा, समाज को आईना दिखा सकतीं थीं, एक mature सब्जेक्ट पर अच्छी फिल्म बना सकतीं थीं, पर अफसोस ऐसा हुआ नहीं…

तो नाम के अनुरूप ही करीब करीब सिंगल, होते होते भी कुछ हो न पाई.. देखना चाहें तो कुछ लाइट मोमेंट्स आपको हंसा सकते हैं, पर उससे ज़्यादा कुछ नहीं इस मूवी में..
Anupama Sarkar

Leave a Reply