सुबह के पांच बजते बजते, 10 बाय 10 के कमरे की कृत्रिम हवा बासी लगने लगी है… पलकें भारी हैं.. नींद अपना आधिपत्य त्यागने को तैयार नहीं.. पर मन भर चुका…सोच की दो बूँद और.. और बस छलक जाएगा.. मैं करवटें बदलती हूँ… पंछियों के चहचहाने की आवाज़ें सुनाई दे रहीं हैं… कलरव में शहद घुला है.. शायद रात जो बादल बरसे, खारेपन को धो गए.. दो पल झिझकती हूँ.. चादर सर तक तान सोने का नाटक करती हूँ… पर दम घुट रहा है.. नरम बिस्तर काँटों सा चुभ रहा है.. चिंहुक कर खड़ी हो जाती हूँ… पाँव ज़मीन की ठंडक महसूसते ही हरकत में आ जाते हैं… जाने गुरुत्वाकर्षण है या चाँद का जादुई खिंचाव… टेढ़े मेढ़े कदमों से आँगन में चली आई हूँ.. हवा ठंडी है… पत्तियों की सरसराहट रोम रोम में कम्पन पैदा कर रही है.. छतों के बेहद करीब…पर तेज़ी से गुज़रते तोते, चीलें, कबूतर, मैना मुझे पहचान में नहीं आते… उनकी उड़ान में गज़ब की गति है… मानो रात की बारिश ने नई ऊर्जा भर दी हो.. अब तक मेरी नींद भी उड़ चुकी… आँखें चाँद को ढूँढने लगीं हैं.. बादलों की ओट से मुस्काता है वो.. फांक सा है पर रस कम नहीं.. एकटक देखती हूँ.. वो उबरता है… अलसाई नज़रों से मुझे निहार, फिर बादलों के आगोश में गुम होने के लिए.. कहीं दूर से कोई मुझे पुकारता है…’येसुबह के पांच बजते बजते, 10 बाय 10 के कमरे की कृत्रिम हवा बासी लगने लगी है… पलकें भारी हैं.. नींद अपना आधिपत्य त्यागने को तैयार नहीं.. पर मन भर चुका…सोच की दो बूँद और.. और बस छलक जाएगा.. मैं करवटें बदलती हूँ… पंछियों के चहचहाने की आवाज़ें सुनाई दे रहीं हैं… कलरव में शहद घुला है.. शायद रात जो बादल बरसे, खारेपन को धो गए.. दो पल झिझकती हूँ.. चादर सर तक तान सोने का नाटक करती हूँ… पर दम घुट रहा है.. नरम बिस्तर काँटों सा चुभ रहा है.. चिंहुक कर खड़ी हो जाती हूँ… पाँव ज़मीन की ठंडक महसूसते ही हरकत में आ जाते हैं… जाने गुरुत्वाकर्षण है या चाँद का जादुई खिंचाव… टेढ़े मेढ़े कदमों से आँगन में चली आई हूँ.. हवा ठंडी है… पत्तियों की सरसराहट रोम रोम में कम्पन पैदा कर रही है.. छतों के बेहद करीब…पर तेज़ी से गुज़रते तोते, चीलें, कबूतर, मैना मुझे पहचान में नहीं आते… उनकी उड़ान में गज़ब की गति है… मानो रात की बारिश ने नई ऊर्जा भर दी हो.. अब तक मेरी नींद भी उड़ चुकी… आँखें चाँद को ढूँढने लगीं हैं.. बादलों की ओट से मुस्काता है वो.. फांक सा है पर रस कम नहीं.. एकटक देखती हूँ.. वो उबरता है… अलसाई नज़रों से मुझे निहार, फिर बादलों के आगोश में गुम होने के लिए.. कहीं दूर से कोई मुझे पुकारता है…’ये सुबह प्यारी है’… मैं पल भर को उसे महसूसती हूँ और होंठ बुदबुदा उठते हैं… सुबह सचमुच प्यारी है…’ये सुबह प्यारी है’… मैं पल भर को उसे महसूसती हूँ और होंठ बुदबुदा उठते हैं… सुबह सचमुच प्यारी है…
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