अभी अभी एक खबर पढ़ी कि एक पति ने अपनी पत्नी की उंगलियां इसलिए काट डालीं क्योंकि वो आगे पढ़ना चाहती थी.. खून उबल आया, कैसे घटिया लोग हैं इस ज़माने में.. और फिर याद आया, कुछ साल पुराना एक वाकया.. किसी ने चुपके चुपके बतलाया था..
वो अक्सर किसी काम से दफ्तर में आती थीं.. वाकपटु थीं और मैं चुप्पा मिज़ाज.. वे ही बात शुरु करतीं.. कई किस्से सुनातीं.. एक दिन कहने लगीं कि पहले पति के शराब पीने की लत से परेशान रहती थी, अब मैंने फिक्र करना छोड़ दिया..
मैंने पूछा, क्यों? अब नहीं पीते? उन्होंने लंबी सांस ली और आपबीती सुनाने लगीं..
बोलीं “पहले बहुत मना करती थी और बदले में गालियां, थप्पड़ खाती.. हमेशा यही समझती रही कि शराब सर चढ़ कर बोलती है, आदमी का खुद पर कंट्रोल नहीं रहता.. जो भी हो, प्यार करता है मुझसे और बच्चों से.. बाकी का वक़्त तो सुकून से ही कटता है..
पर एक दिन बच्चों और पति के साथ बरामदे में बैठ कर चाय पी रही थी.. मच्छर उड़ने लगे तो पति इलेक्ट्रिक रैकेट लेकर आए और तड़तड़ मारने लगे.. अचानक जाने क्या सूझी कि एक बार रैकेट मुझे भी मार दिया..”
इनकी बाजू में लोहे की रॉड डली थी, बचपन में कोई major फ्रैक्चर हुआ था.. पति को बखूबी पता था, ये ज़ोर से चिल्लाने लगीं, आंसू झर झर बहने लगे, आखिर करेंट दौड़ा था बांह के लोहे में..
कहने लगीं, मैं चीखने लगी कि यहां मत मारो, बहुत दुखता है.. पर पति के चेहरे पर टेढ़ी मुस्कान खेल रही थी, “कितना तमाशा कर रही है, ले एक और खा”.. आखिर बच्चों ने ही पिता के हाथ से रैकेट छीना और भाग गए..
मुझसे बोलीं, मैंने उस दिन के बाद से उनको शराब पीने के लिए कभी नहीं टोका.. वो बिना जहर पिए भी जहरीला ही था..
उस दिन बदन में सरसराहट हुई थी, आज फिर ये खबर पढ़कर वही बात याद आई.. क्यों कुछ आदमी इस हद तक गिरे हुए होते हैं कि उन्हें बीवी इंसान नहीं सामान नज़र आती है.. जिसे जब चाहा जहां चाहा पटक दिया.. क्या सचमुच नशे के ही वशीभूत हैं ऐसे पुरुष या फिर उनका पुरुष होना ही सबसे बड़ा नशा है.. पत्नी के शरीर, आत्मा, अस्तित्व को चोट पहुंचाने वाले ये मर्द, क्या किसी भी तरह इंसान कहलाने लायक भी हैं?
और ये न कहिएगा कि अब ऐसा नहीं होता.. ज़रा सा हौसला देकर देखिएगा, आपके आसपास ही किसी औरत का दर्द यूं ही फूट पड़ेगा, जैसे उस दिन वे रोईं थीं मेरे सामने, बावजूद इसके कि घटना को दो साल हो चुके थे.. अनुपमा सरकार
Recent Comments