Hindi Poetry

पुल

अजब है ज़िन्दगी
किसी के लिए हम पुल
तो कोई हमारे लिए पुल
कितने पुल पार हुए
कितनी बार पुल बनकर बदहाल हुए
किसी को याद भी नहीं
वैसे भी
याद रह जाए तो चुभन होती है
ख़ुद पर से गुज़रते बूटों की ठक ठक
कहीं अंदर तक भेद जाती है
ज़ख्मों को भूल जाना ही बेहतर
कुरेदते रहने से नासूर जो बन जाते हैं
वही पुल, वही बूट, वही ज़ख्म
किसी और को भी तो भेदते होंगें
पर ये सोचने की फुर्सत किसे
कि राहगीरों का ही नहीं
पुलों का भी कोई इतिहास हुआ करता है…अनुपमा सरकार

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