उदासी का मुखोटा ओढ़े
फिर आई है ये सुबह
नाखून गढ़ा देती हूँ ज़मीं में
खींचती हूँ आढ़ी टेढ़ी लकीरें
परिधियों में कैद हो जाती हूँ
फिर छलकता है एक आंसू
मिटता है ज़रा सा निशान
मन भागते हुए सीमा पार कर जाता है
मैं अन्मयस्क सी खोजती हूँ
एक और मुखोटा
जीने के लिए प्रयास ज़रूरी है
Anupama
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