Hindi Poetry

प्रेम परिभाषा

प्रेम
इस छोटे से शब्द को परिभाषित करना
दुनिया का सबसे मुश्किल काम है
आप कह भर दें कि मुझे “तुमसे” प्रेम है
कि बस
“तुम” का होना, उसका होना रह ही नहीं जाता
क्षण भर में परिवर्तित हो जाता है
“मैं” और “तुम” एक “हम” में
केवल व्याकरण की पेचीदगी नहीं इसमें
सिर्फ़ शब्दों की हेराफेरी भी नहीं
कुछ हटकर, कुछ बच कर, कुछ छूट कर
और बहुत कुछ छोड़ कर और जोड़ कर
होता है प्रेम
आलिंगन, चुंबन, सहवास…
केवल यही तो नहीं
तब भी जब इसके एक कोने पर स्त्री
और दूसरे पर पुरुष हो
ज्यामितीय और सांख्यिकी की परिधि के
बाहर की वस्तु है प्रेम
बारिश की कुछ बूंदों का
संग चख लिया जाना
चाय की कुछ चुस्कियां का
एक साथ हाथों और दिल को तपाना
धूप की कुछ गोलियों का
धीमे धीमे बालों पर सरक जाना
कितना कुछ तो है प्रेम
इस “अहसास” का “अहसास”
इतना कोमल, इतना निरीह, इतना स्निग्ध
कि होंठों से कह भर देना
इसे खो देना है… अनुपमा सरकार

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