Fiction / Nano fiction

प्रेम अबूझ पहेली

प्रेम अबूझ पहेली है या केवल एक भ्रम….चिरकाल से मानव मन की सबसे जटिल गुत्थी शायद इस अहसास को न समझ पाना ही है…क्या प्रेम काल परिस्थिति भाव अनुसार बदल जाता है या फिर केवल परिभाषाएं बदलती हैं …कुछ वैसे ही जैसे पानी उबलकर भाप में बदलते ही छुअन से परे हो जाता है या फिर उस मीठी पुरवाई की तरह कभी इतना विस्तृत हो उडता है कि न किन्हीं मापदंडों में तोला जा सकता है और न ही उसके होने या न होने का प्रमाण ही जुटाया जा सके….हर वक्त इक नया आयाम नया रूप धरे ये प्रेम रूपी जादूगर मकडजाल बुनता रहता है जिसे काटना असंभव और उसमें डूबे रहना रेत में गर्दन छुपाए बैठे शतुरमुर्ग सी मूर्खता…पल में ओझल पल में बोझिल अहसास कब कौन समझ पाया इसे….

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