Fursat ke Pal

प्रतीक्षा

प्रतीक्षारत होना सुख या दुख का शेष हो जाना है.. धरती का मुखर मौन बादलों की गड़गड़ाहट के सामने शांत नज़र आता है, परन्तु होता नहीं.. उद्वेलित होती है वो भी.. आंदोलित हो तड़पती भी है.. पर उसमें कोई परिवर्तन प्रत्यक्ष रूप में दिखता नहीं… गर्भगृह में होती हलचल से सर्वथा अनजान संसार, उसकी ठोस सतह से भ्रमित रहता है.. उसकी प्रतीक्षा की उपेक्षा किसी को अनुचित नहीं लगती… शुष्क धरा का छिन्न भिन्न स्वरूप स्वतः नज़र नहीं आता… सहनशीलता की चरम पराकाष्ठा पर उसे शनैः शनैः धकेलता सूर्य अपनी ऊष्णता पर अभिमान करते नहीं थकता… नभमंडल में घनघोर गर्जन करते मेघ विस्मृत कर देते हैं उन दिनों को जब वे जल रूप में धरती के सीने से चिपके हुए अपनी शीतलता पर इतराते न थकते थे.. वाष्पित होते ही अपनत्व का भाव अदृश्य हो जाता है… दल बदल कर आकाश की परिधियों में भ्रमण करते श्याम श्वेत मेघदूत, धरती की तृष्णा के मूक बधिर दृष्टा बने रह जाते हैं.. सर्वथा उपेक्षित धरा कठोर प्रतीक्षा का बिंब मात्र रह जाती है… शुष्क नयनों में भविष्य के आद्र स्वप्न लिए…
Anupama

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