श्यामल रात्रि के धवल चन्द्र की शीतलता
निर्मल प्रभात के मुखर सूर्य की ऊष्णता
गोधूलि के क्षीण तारकों की चंचलता
ब्रह्म मुहूर्त के पंछी की कलरवता
तुम्हारे हर रूप से आकर्षित धरा बाला
किंचित लज्जाती किंचित मुस्काती
अधरों पर नवगीत सजाये कहती
शनै शनै उदित हो
नभ मण्डल में ओ प्रहरी !
सुस्वागतम् करूं मैं नव दिवस का 🙂
Anupama
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