वे चुपके से आयीं और मेरी साथ की कुर्सी सरका कर बगल में बैठ गईं। अक्सर यूँ ही करतीं हैं। सूती साड़ी, माथे पर बिंदी, बालों में तेल; और मन में एक नयी कहानी। उनकी भाव भंगिमा देखकर समझ जाती हूँ कि आज फिर कुछ नया सुनने को मिलेगा मुझे। पर अब मैं ये दर्शाती नहीं। चुपचाप प्रतीक्षा करती हूँ।
2-3 मिनट चुप रहीं वो, चाय के घूंट भरे और फिर हौले से बोलीं, एक बार ज्वाला जी मंदिर गयी थी, पर वहां बाज़ार में रास्ता भूल बैठी। पहाड़ी जगहें, मैदानों से थोड़ी न होतीं हैं। कहीं चढाई, कहीं उतराई, कहीं गोल सड़कें और तेज़ मोड़; मैं ठहरी घर से कम निकलने वाली, रास्ते ही पहचान में नहीं आते।
मैंने मुस्कुराकर हामी में गर्दन हिलायी। हालांकि जानती हूँ कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा समझदार और हिम्मती हैं। तीर्थों पर जाना, उनका शौक है और मुझे कहानी सुनाना, आजकल एक शगल।
बात को आगे बढाने के मकसद से मैंने उनसे पूछा, वहां सन्तोषी माता मंदिर भी तो है, चढाई पर। उन्होंने ज़रा हैरानी से मुझे देखा और कहा, नहीं तो! फिर मेरा चेहरा देखकर बोलीं, अच्छा, अगली बार दर्शन करके आऊंगी। मैं और वो दोनों ही आंखों आंखों में मुस्कुरा दिए। पर संवाद यूँ खत्म नहीं होता हमारा। उनके मन की कहानी जब तक बाहर न आ जाये, खलबली सी रहती ही है। और हमारी आज की बातचीत का विषय निर्धारित हो चुका था।
एक छोटे से विराम के बाद वे कहने लगीं, जानते हो, जोधपुर में है, प्रगट सन्तोषी माता मंदिर, लाल तालाब के नाम से। सन्तोषी माँ का सबसे पहला और पुराना मन्दिर। बहुत मान्यता है। वहां के तालाब में लाल रंग के कमल खिलते हैं, पत्ते बिछे रहते हैं। कहते हैं, माता उन्हीं पत्तों पर चलकर आयीं थीं भीतर। मां के चरण चिन्ह अब भी ड्योढ़ी पर अंकित हैं।
मैंने सहजता से दूसरा सवाल दागा, कौन हैं सन्तोषी मां। वे बोलीं, गणेश की बेटी!
आह! अब चोंकने की बारी मेरी थी। वाक़ई, ये बात पहले दिमाग मे क्यों न आई। गणेश, ज्ञान बुद्धि के दाता, विघ्नहर्ता और उनकी पत्नी रिद्धि-सिद्धि, यानी लौकिक और भौतिक समृद्धि देने वालीं। तो फिर क्योंकर उनकी बेटी सन्तोष प्रदान करने वाली यानी सन्तोषी न होगी!
सनातन धर्म की यही खूबी मेरा मन मोह लेती है। ऊपर ऊपर से देखें तो सारी बातें ढकोसला सी लगतीं हैं। धर्मभीरु लोगों द्वारा फैलाया और पोषित किया प्रपंच। पर ज्यों ही, सतह खुरचती हूँ, तो सच पारे की तरह, निर्मल हो, विशुद्ध लॉजिक के साथ मेरे सामने चला आता है। जिसने भी ये कहानियां रचीं, देवी देवताओं की मूर्तियां और उनके रूप, गुण, सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों को उकेरा, उनके पूजा विधि को निर्धारित किया। वे वाक़ई बेहद ज्ञानी रहे होंगे। विज्ञान, मनोविज्ञान, भौतिकी और समाज शास्त्र के अखण्ड ज्ञाता। अफसोस, उनके मूल सूत्र, कुछ इस तरह ऊपरी दिखावों के शिकार हो गए कि हम पढ़े लिखे लोग, सोचने समझने में गच्चा खा गए। कहानियां बहुत सी हैं, और लॉजिकल भी, बस ज़रा सा समय और विस्तृत फलक की दरकार है।
Anupama
#katha
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