यादों की पोटली नहीं होती कि
कसकर बाँध दो तो बाहर न छलकें
न जादूगर की टोपी सरीखी हैं कि
घास चबाता खरगोश या
पंख फड़फड़ाता कबूतर निकल आए
जब मन चाहे
यादें तो शरारती बच्चे सी हैं मनमौजी
जितना पीछा करो उतनी तेज़ी सी
दौड़ी जायें और जब थक जाओ तो
धीमे से खुद ब खुद ही गलबहियां दे दें 🙂
Anupama
Recent Comments