Hindi Poetry

यादों की पोटली

यादों की पोटली नहीं होती कि
कसकर बाँध दो तो बाहर न छलकें
न जादूगर की टोपी सरीखी हैं कि
घास चबाता खरगोश या
पंख फड़फड़ाता कबूतर निकल आए
जब मन चाहे
यादें तो शरारती बच्चे सी हैं मनमौजी
जितना पीछा करो उतनी तेज़ी सी
दौड़ी जायें और जब थक जाओ तो
धीमे से खुद ब खुद ही गलबहियां दे दें 🙂
Anupama

Leave a Reply