आज गोपाल सिंह नेपाली जी की कुछ कविताएँ पढ़ीं। कुछ देशभक्ति से ओत प्रोत मन में नया उत्साह भरने वाली थीं तो कुछ कोमलता से बेटियों के पराया होने की व्यथा सुनातीं। हिमालय के प्रति गर्व भी दिखा उनकी कविताओं में तो राजनीति के झूठे समीकरणों में न उलझने का प्रण भी।
गोपाल सिंह जी की ऐसी ही एक कविता आप सबके साथ शेयर कर रही हूँ :
कर्णधार तू बना तो हाथ में लगाम ले
क्राँति को सफल बना नसीब का न नाम ले
भेद सर उठा रहा मनुष्य को मिटा रहा
गिर रहा समाज आज बाजुओं में थाम ले
त्याग का न दाम ले
दे बदल नसीब तो ग़रीब का सलाम ले
यह स्वतन्त्रता नहीं कि एक तो अमीर हो
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फकीर हो
न्याय हो तो आर-पार एक ही लकीर हो
वर्ग की तनातनी न मानती है चाँदनी
चाँदनी लिए चला तो घूम हर मुकाम ले
त्याग का न दाम ले
दे बदल नसीब तो ग़रीब का सलाम ले
Gopal Singh Nepali
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