Hindi Poetry

Poems by Anupama

चांद नदारद है
तारे भी हड़ताल पर
उदास आसमां गहरी सांस ले
पेड़ से झूलते
चमगादड़ के कान में
हौले से बुदबुदा रहा
“मैं भी कभी ज़मीं हुआ करता था
जाने कब कैसे उल्टा लटक गया”
Anupama

उसका वक़्त बहुत मामूली था
बिन सोचे पलों को खर्च कर दिया

उसका वक़्त बहुत कीमती था
मुठ्ठी में भींचकर कैद कर लिया

रेतघड़ी की बेजान आवाजाही में
बेशकीमती लम्हें अपना वजूद खोते रहे
Anupama

प्रेम को प्रेम लिखना
मौन को मौन पढ़ना
दुनिया का सबसे मुश्किल काम है

क्यों न हो
आखिर ईश्वर बन्द आंखों
और भाव चंद शब्दों के ही मोहताज हैं….
Anupama

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