चांद नदारद है
तारे भी हड़ताल पर
उदास आसमां गहरी सांस ले
पेड़ से झूलते
चमगादड़ के कान में
हौले से बुदबुदा रहा
“मैं भी कभी ज़मीं हुआ करता था
जाने कब कैसे उल्टा लटक गया”
Anupama
उसका वक़्त बहुत मामूली था
बिन सोचे पलों को खर्च कर दिया
उसका वक़्त बहुत कीमती था
मुठ्ठी में भींचकर कैद कर लिया
रेतघड़ी की बेजान आवाजाही में
बेशकीमती लम्हें अपना वजूद खोते रहे
Anupama
प्रेम को प्रेम लिखना
मौन को मौन पढ़ना
दुनिया का सबसे मुश्किल काम है
क्यों न हो
आखिर ईश्वर बन्द आंखों
और भाव चंद शब्दों के ही मोहताज हैं….
Anupama
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