एक समय की बात है
मेरे मित्रों
ये आकाश कोई सीमा नहीं जानता था
और ये पृथ्वी कोई परिधि।
तुम जो भी चिल्लाते थे
वह एक गीत बन जाता था पर
उसे कोई सुनता नहीं था।
तुम्हारे कदम जहां भी ले जाते थे
एक पथ बन जाता था पर
कोई तुम्हारे पीछे चलता नहीं था
परंतु आज जब ये होंठ सिल दिए गए हैं
और पांव बांध दिए गए हैं
बंधे पैरों के संघर्ष से
(चाहे तुम बेड़ियां न तोड़ पाओ)
पर नभ में उस आकाश गंगा को तो
रोशन कर ही सकते हो!
चुप्पी तोड़ने की सिर्फ एक कोशिश से
(चाहे तुम एक अक्षर भी न कह पाओ)
पर इस पृथ्वी को सामूहिक स्वर से
गुंजा सकते हो!!
हिन्दी अनुवाद : अनुपमा सरकार
Originally written by Chandrashekara Patil in Kannada.
Present translation based on English version by Patil himself.
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