Hindi Poetry

पक्षी

तुमने कभी बिजली की तारों पे

बैठे पंछी देखे हैं?

अक्सर चौराहों पे दिखते हैं।

दाना चुगते, गोल से घूमते और

फिर बैठ जाते चुपचाप पंक्ति बनाके।

कभी आराम फरमाते नज़र आते हैं तो

कभी उदास दिशाहीन से

ज्यों मंदिर के बाहर बैठे भिखारी हों।

भगवान के बेहद समीप होते हुए भी

एकदम जुदा।

अजब रीत ज़माने की

उन्मुक्त गगन में उड़ने वालों को भी

परिधियों में समेट दिया।

तारों से चौराहों तक के

सफर में बांध दिया।

Anupama

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