दर्द श्वेत है दर्द श्याम है
बच्चन की रोबीली आवाज़ में
ये बात जितनी मार्मिक लगती थी
दरअसल उतनी है नहीं।
जब कल मेरे पांव में मोच आई
तो अहसास हुआ दर्द तो बेरंग है
और फिलहाल जल्दबाजी का फल है
इसके आगे मूव और झंडु बाम भी फेल हैं।
एक टीस सी उठ रही है
नसों के साथ बहती, सांसें अटकाती
खाट पर लेटे रहने को मजबूर
मेरे तन के रोम रोम को रूलाती।
पर हर दुख के साथ कहीं छुपा
महीन सा सुख भी होता है
कुछ समय के लिए मेरी चपलता पर रोक है
पर कविता पर कोई बंधन नहीं।
मेरी लेखनी ही होगी अब सर्वोपरि
मेरी सच्ची संगिनी असलियत से रूबरू कराती
तन की पीड़ा को मन के भावों को व्यक्त कराती।
शायद वाकई दर्द श्वेत है श्याम है
या कम से कम रंगीला तो है ही।
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