Hindi Poetry / My Published Work

ऊंचा आसमां

आसमां यकायक
बहुत ऊंचा हो गया है
दूर कहीं फलक पर
सूरज चमक रहा है।

बादल भी छितरे से हैं
कहीं गहरे नीले तो
कहीं धुंधलाए से सफेद
जैसे स्याही की शीशी उड़ेल
दी हो किसी अनाड़ी ने।

क्षितिज पर लिखे
अक्षर मिट से गए हैं
क्या मालूम कभी कुछ
लिखा ही नहीं गया उन पे।

बहरहाल ये आकाश
जो बादलों के बोझ तले
झुका सा दिखता था
अब ऐंठ के सीधा हो चला है।

करवटें बदल रही है
प्रकृति हर पल
पतझड़ का आखिरी दांव है
बेरहम तो होगा ही।

पर हम भी ज़िद्दी हैं
बादलों को लौटाए
बिना मानेंगें नहीं
इंतज़ार करेंगें बस यूँ ही!
(Published in Saurabh Darshan)

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