सुनहला सूरज अपने सातों घोड़ों संग सुबह से ड्योढ़ी पे आस लगाये बैठा है …. चीलों की सीटियां …. गिलहरी की टिकटिक … मैना की कैं कैं सुनके भी अनसुना करता शांत भाव से मुस्कुराता हुआ हामी की इंतज़ार करता … कि कब बदलियों का इशारा हो और .. ओस की बूंदों में अपना प्रतिबिम्ब हौले से दिखलाये … वज़नी है सूरज पर कितना विनम्र … कभी चूं न करता … यहाँ बादलोँ की थिरकन शुरू हुई नहीं कि झट पीपल की पत्तियों में मस्त आशिक सा प्रेम धुन पर गर्दन मटकाने लगे …. पल भर पहले झुलसती चिंहुकति चम्पा चमेली को आलिंगन में ले मेघ गर्जन की थाप पर हौले हौले अँखियाँ चमकाने लगता …
और एक ये तरबूजी चाँद है … जाने कहाँ हवा हुआ … कल रात तारिकाओं संग बतिया रहा था … जाने क्या नई पहेलियाँ बूझा रहा था … खिलखिलाहट तकिये के नीचे दबे कानों तक टपक रही थी … एक कौमुदिनी दिल ही दिल में सारी रात जली… सुबह ठण्डी बयार ने ज़ख्मों पे मरहम लगायी… हल्की सी गुलाबी रंगत खिल आई …अंगार दब सा गया … पर चाँद टस से मस न हुआ … मस्तानी घटाओं संग उड़ता रहा …. गुलज़ार साहब ने ठीक ही पहचाना … माथे पे वो चोट का निशान किसी आवारा उल्का से हुई गुलेल-भेंट की ही निशानी है … भोर की पहली किरण से ही नदारद है ….सच्ची इस चन्दा को सताने की बड़ी आदत है …
बहरहाल सूरज का कोम्प्रोमाईज़ बदलियों से हो चला … दोनों संग संग आसमां में विचर रहे हैं और हम माथे से बहती पसीने की धार को दुप्पट्टे के कोने से पोंछते हुए पंखे से थोड़ी गति बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं … सावन जा रहा है पर उमस का इरादा कुछ ठीक नहीं लगता 🙂
Anupama
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