फोन पर देर तक बातें करना, अपने भीतर छुपे डर और एहसासों को एक दूसरे से बांटना, बिना किसी रोक टोक या पूर्वाग्रह के जो दिलोदिमाग में चल रहा हो, कह देना… शायद ये बेबाकी, बहुत मुश्किल से मिलती है रिश्तों में, पर मिल जाए, तो जहां मुकम्मल लगने लगता है… ज़िंदगी में उतार चढ़ाव, सुख दुख, आते जाते रहते हैं, पर किसी ऐसे साथी का होना, जिसके सामने आप बिना लाग लपेट के, सब कह सकते हों, शायद रास्तों को बहुत आसान बना देता है…
कुछ ऐसी ही सोच लिए, शुरू होती है Netflix की मूवी Once Again.. नाम अंग्रेज़ी में ज़रूर है, पर शेफाली शाह और नीरज कबी की हाल में रिलीज़ हुई ये फिल्म, लुक्स, फील और ट्रीटमेंट में विशुद्ध भारतीय है.. एक ट्रेडिशनल सेटअप में अनकन्वेशनल कहानी गढ़ती हुई…
नीरज कबी, एक फिल्म स्टार अमर कुमार की भूमिका में हैं… वे बेहद सफल हैं, पर उतने ही अकेले और अपने काम से असंतुष्ट.. उनका तलाक हो रहा है और उन्हें अक्सर ये मलाल कचोटता है, कि वे परफेक्ट नहीं हो पा रहे.. पति, पिता, हीरो, किसी भी भूमिका में.. उनके अंदर का आर्टिस्ट और पुरुष दोनों ही दबे दबे से लगते हैं..
तभी उनकी ठहरी सी ज़िन्दगी में लहरों सी उमड़ती हैं, तारा शेट्टी (शेफाली शाह)… तारा, मुंबई में एक उद्दीपी रेस्टोरेंट चलाती हैं, बेटे की शादी करने वाली हैं, और अपने बेटे और बेटी को, पति की मृत्यु के बाद 20 साल से, अपने दम पर अच्छी परवरिश दे रही हैं..
अमर कुमार (नीरज) अक्सर उनके रेस्टोरेंट से खाना ऑर्डर करते हैं, डिलीवरी के लिए तारा का बेटा उनके घर आता जाता है.. हालांकि तारा, अमर से अब तक नहीं मिली, पर एक साल से लगातार दोनों एक दूसरे से फोन पर बातें करते हैं, और अपनी मुश्किलें और खुशियां साझा.. फिल्म की शुरुआत में ही ये क्लियर हो जाता है, कि दोनों ही एक दूसरे के साथ काफी कंफर्टेबल हैं और उनका रिश्ता मज़बूत और ईमानदार…
पर ज़िंदगी फोन पर तो नहीं कटती… जल्द ही अमर, तारा से मिलने की ज़िद लिए, उन्हें फॉलो करने लगते हैं..
शेफाली और नीरज, इन मोमेंट्स को जीते हुए बेहद सहज लगते हैं.. नीरज कबी की पुरानी फैन हूं, व्योमकेश बख्शी में उनका विलेन के रूप में आना खासा प्रभावित कर गया था… और हाल फिलहाल देखी Sacred Games में उनका अभिनय पसंद आया था.. यहां भी वे एक restrained lover की भूमिका में खासे जमे..
शेफाली शाह, तारा शेट्टी के रोल में, सूती साउथ इंडियन साड़ी, ढीले जूडे और डीप नेक ब्लाउज़ में, बेहद खूबसूरत लगीं… उनकी बड़ी बड़ी आंखें और धीर गम्भीर लहज़ा, एक ऐसी औरत की छवि बखूबी प्रदर्शित करता रहा, जो कि सालों से आर्थिक और भावनात्मक रूप से खुद को मज़बूत किए बैठी है… इन शॉर्ट, अमर और तारा एक दूसरे के लिए, परफेक्ट जीवनसाथी हैं…
पर मानव मन इतनी आसानी से ये बातें मानता कहां है.. फोन पर बात करना आसान, मिलकर तारीफ कर देना भी सरल, हाथ पकड़कर, शहर घूमना भी सहज.. पर लोगों की नज़रों में आ जाने पर, रिश्ते की डोर को थामे रखना बेहद मुश्किल.. इसका ज़्यादा ख़ामियाज़ा शेफाली ही भुगतती हैं.. उनका बेटा उन्हें नकार देता है, पत्रकार पीछे लग जाते हैं, और वे खुद ग्लानि और पश्चाताप से भर जाती हैं.. बस एक बात अच्छी, कि उनकी बेटी, उनके हर फैसले के साथ है..
उधर नीरज को इस तरह के अफेयर्स के मीडिया में उछलने की आदत है, उनकी बेटी भी अपने डैडा की लाइफ पार्टनर का स्वागत करने को तैयार… पर नीरज को खुद ही रिश्तों से डर लगता है, वे शेफाली का साथ चाहते हैं, पर रिश्ते को कोई नाम देने में खास इंटरस्टेड नहीं..
कुल मिलाकर, स्त्री और पुरुष के प्रेम का अंतर Once Again में काफी मुखर है.. शेफाली प्रेम में लिप्त हो, बिना मिले ही नीरज की प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ से अच्छी ख़ासी परिचित हैं, और उनकी ज़्यादातर बातचीत नीरज की बेहतरी के लिए ही होती है.. उधर नीरज, मिलने में आतुर, और प्रेम प्रदर्शन में दक्ष होने के बावजूद, शेफाली के अकेलेपन और उसकी आर्थिक परेशानियों से अपरिचित ही दिखते हैं..
अच्छा लगा कि निर्देशक कंवल सेठी ने, अमर कुमार के ज़रिए, पुरुष की आज़ाद रहने की फितरत और साथ पाने की इच्छा को, बिना किसी किन्तु परंतु में उलझे, साफ साफ दिखाया… नेचुरल इंस्टिंक्ट्स को morality और सोसाइटल प्रेशर से दूर रखे जाना अच्छा लगा..
हालांकि संवाद और संगीत के क्षेत्र में निर्देशक चूक गए.. फिल्म काफी धीमी गति से चलती है… दो बेहतरीन कलाकार, अपने फेशिएल एक्सप्रेशंस से बहुत कुछ कम्युनिकेट कर गए, पर अगर डायलॉग्स भी दमदार होते, तो बात ही कुछ अलग होती.. मुझे मुंबई भी मुंबई नहीं, बल्कि साउथ इंडिया का ही पार्ट लगी.. कई बार एहसास हुआ कि इस फिल्म में साउथ सिनेमा का प्रभाव है.. जबकि फिल्म हिंदी में, मुंबई में शूट की गई है..
वहीं नृत्य को एक metaphor की तरह इस्तेमाल करने में भी कंवल सेठी नाकाम होते दिखे.. नीरज अपने डांस में सूफियाना ट्रांस में दिखते हैं, जबकि बैकग्राउंड में शास्त्रीय संगीत बजता रहता है, कह सकते हैं कि ज़बरदस्ती ट्रेडिशनल और आर्टिस्टिक रूप देना, इस मूवी को कम इंप्रेसिव बना गया.
पर फिर भी Once Again, अपनी धीमी रफ्तार के बावजूद बांधे रखती है.. एक अच्छी कोशिश, जो और बेहतर की जा सकती थी.. Anupama Sarkar
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