तेरा तुझको अर्पण करके भी मैं परेशान
ऐसा तो हो नहीं सकता।
शायद मेरे समर्पण में ही कोई कमी है।
इसे पूर्ण करने की एक कोशिश और करूँ
या छोड़ दूं इसे बीच राह में
असमंजस तू ही सुलझा।
चल एक बात तो मानी
मेरे दुस्वप्न सच होते हैं।
स्वप्नों की झिलमिलाहट का
ठिकाना दूर सही
कुछ फल तो यहीं
करीब हैं।
खैर ये तो होना ही था
चीलों के बीच कबूतर सी
कब तक मंडरा लेती।
एक न एक दिन धराशायी
तो होना ही था।
तो फिर ये आंसू क्यों?
पूर्वाभास सत्य होने
पर दुख क्यों?
विनम्र हो स्वीकारना
ही अधिक श्रेयस्कर होता न!
चुप्पी साध बैठ जाऊं?
नहीं शायद नहीं।
क्योंकि कुछ चुभ रहा
है भीतर अंदर तक
प्रतिशोध की आग में ही जलूं
या भूल सब आगे बढूं
रहेगा अभी ये असमंजस
कुछ और दिन।
पर कोशिश तो करनी
ही होगी एक और।
बदलना होगा इन परिस्थितियों को
छंटना होगा इन बादलों को
दिवाकर! तुझे मुक्त होना होगा
इन काले मेघों के घेरे से
तुझे तेरे भगवान की कसम।
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